भारत में आरक्षण की राजनीति एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है। यह सवाल उठता है कि आरक्षण की वर्तमान प्रणाली को कौन खत्म करेगा - भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) या कांग्रेस? आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
1. आरक्षण की पृष्ठभूमि
आरक्षण का उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से वंचित और पिछड़े वर्गों को सामाजिक और आर्थिक रूप से ऊपर उठाने में सहायता करना रहा है। संविधान में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। समय-समय पर सरकारों ने इस व्यवस्था को विस्तार दिया है।
2. बीजेपी का रुख
बीजेपी ने आमतौर पर आरक्षण के समर्थन में अपना पक्ष रखा है। हालांकि, पार्टी के भीतर और बाहर कुछ संगठनों ने आरक्षण के खिलाफ आवाज उठाई है, लेकिन भाजपा की सरकार ने अब तक इसे खत्म करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
बीजेपी के कुछ नेताओं ने समय-समय पर आरक्षण की समीक्षा की बात कही है, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हमेशा इसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा माना है। आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी का रुख अक्सर बदलता रहता है, खासकर चुनावी मौसम में।
3. कांग्रेस का रुख
कांग्रेस पार्टी आरक्षण के प्रति हमेशा समर्थक रही है। पार्टी ने अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण के विस्तार और सुदृढ़ीकरण के लिए कई कदम उठाए हैं। कांग्रेस का रुख स्पष्ट है कि आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है, और इसे खत्म करना सही नहीं होगा।
4. आर्थिक आधार पर आरक्षण
दोनों ही पार्टियां आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर अपने-अपने विचार रखती हैं। बीजेपी ने 2019 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% आरक्षण लागू किया, जो गैर-अनुसूचित जातियों और गैर-अनुसूचित जनजातियों के लिए है। कांग्रेस ने भी इस पर अपना समर्थन जताया, लेकिन इसके साथ ही सामाजिक आरक्षण को बनाए रखने की बात भी कही है।
5. क्या आरक्षण खत्म होगा?
आरक्षण को खत्म करने का कोई स्पष्ट संकेत फिलहाल किसी भी पार्टी की ओर से नहीं दिया गया है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही सामाजिक और राजनीतिक दबाव को समझते हैं। आरक्षण एक संवेदनशील मुद्दा है और इसे खत्म करना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं है। इसलिए, यह कहना मुश्किल है कि कौन इसे खत्म करेगा।
निष्कर्ष
आरक्षण की राजनीति भारत में जटिल और संवेदनशील है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने आरक्षण के मुद्दे पर अलग-अलग समय पर अपने-अपने विचार रखे हैं। लेकिन यह तय करना मुश्किल है कि कौन इसे खत्म करेगा, क्योंकि दोनों पार्टियों ने अब तक आरक्षण के समर्थन में अपने रुख को बनाए रखा है। भविष्य में भी आरक्षण के मुद्दे पर दोनों पार्टियां अपने राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर ही फैसले लेंगी।
आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है कि आरक्षण को खत्म करना सही होगा, या फिर इसे और मजबूत किया जाना चाहिए?
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